Lord Parshuram Story

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आज परशुराम जयंती है। अरुणाचल प्रदेश में लोहित नदी बहती है जिसमें एक कुंड है कहा जाता है कि इस कुंड का पानी लाल रंग का है और इसे परशुराम कुंड कहा जाता है। अरुणाचल प्रदेश में सुनी कथा के आधार पर परशुराम जी व ब्रह्मपुत्र नदी का संबंध वर्णन कर रहा हूं।

*ब्रह्मपुत्र की कहानी...*

अरुणाचल के पूर्वी छोर पर तेजू जिले से कुछ आगे पहाड़ों के छोर की तलहटी पर लोहित नदी एक तीव्र घुमाव बनाती है, घुमाव के बीच इक्टठा हुआ पानी एक कुंड का रूप प्रतीत होती है। इस कुंड को "परशुराम कुंड" के रूप में जाना जाता है। 

परशुराम बेहद क्रोधी स्वभाव के माने जाते हैं, हाथ में कुल्हाड़ी उनका अस्त्र है। अपनी मां से उनका मनमुटाव हो गया और कुल्हाड़ी से परशुराम ने उनकी हत्या कर दी। परशुराम को इस पाप का श्राप मिला कि जो रक्त तुम्हारे हाथ में लगा है उससे यह कुल्हाड़ी तुम्हारे हाथ से चिपकी रहेगी। अब परशुराम कहीं भी जाते कुल्हाड़ी सदैव चिपकी रहती, इस कारण उस हाथ का उपयोग ही समाप्त हो गया ऊपर से वजन और परेशानी अलग से होती। 

बहुत प्रायश्चित और तप के बाद परशुराम को बताया गया कि ब्रह्म कुंड में भगवान ब्रह्मा के पुत्र का वास है वहां स्नान कर के सभी विकार समाप्त हो जाते हैं, अगर उस कुंड में हाथ धो लो तो कुल्हाड़ी हाथ से छूट जाएगी। 

परशुराम हाथ में चिपकी कुल्हाड़ी समेत इस कुंड में पहुंचे और पूजा तथा स्नान किया। उनके हाथ से रक्त छूटने लगा और कुल्हाड़ी अलग हो गई। रक्त के कारण सरोवर के पानी का रंग लाल हो गया और "लहू" से जगह का नाम लोहित पड़ा।

अपने प्रायश्चित और कुल्हाड़ी छूटने पर परशुराम ने ब्रह्माजी के पुत्र से वरदान पूछा तो ब्रह्मा जी के पुत्र ने दुनिया देखने की इच्छा जताई। परशुराम जी ने इस इच्छा को पूर्ण करने के लिए नदी खींची जो अंत में समुद्र में मिली, समुद्र, जिसकी कोई सीमा नहीं है और विश्व में पानी कहीं भी विचर सकता है, इस प्रकार ब्रह्मा जी के पुत्र की इच्छा पूरी हुई और उस कुंड से जो नदी निकली कुछ दूर तक "लहू" से बना नाम, लोहित नदी के नाम से जानी जाती है और तत्पश्चात इसका नाम बदल कर ब्रह्मपुत्र हो जाता है जो पूरे असम, बंगाल और बंग्लादेश से होते हुए समुद्र में जा मिलती है।

यह कथा स्थानीय किंवदंतियों पर आधारित है। पर यह इस तथ्य को दर्शाता है कि भारत के जिस पूर्वी भाग को अधिकतर लोग पिछड़ा समझ कर नाक सिकोड़ते हैं, हमारी भारतीय संस्कृति से सदियों से जुड़ा रहा है और कई पौराणिक पात्र ऐसे हैं जो इस भूभाग से संबंध रखते हैं उदाहरणत: श्री कृष्ण की रानी रूक्मिणी का मायका मणिपुर में था। यह भले ही कहानी लगती हो पर वर्तमान के नामों को पौराणिक मान्यताओं से जोड़कर इन दोनों समयकालों में एक सेतु का काम करती है।

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