एक बार मैं अपने एक मित्र का तत्काल कैटेगरी में पासपोर्ट बनवाने पासपोर्ट ऑफिस गया...
लाइन में लग कर हमने पासपोर्ट का तत्काल फार्म लिया और फार्म भर भी लिया...
लेकिन अब तक काफ़ी समय हो चुका था
और अब हमें पासपोर्ट की फीस जमा करनी थी
परंतु जैसे ही हमारा नंबर आया तब तक बाबू ने खिड़की बंद कर दी
और कहा कि समय ख़त्म हो चुका है * अब कल आईयेगा
मैंने उससे बहुत मिन्नतें की और उससे कहा कि
आज पूरा दिन हमने खर्च किया है
और बस अब केवल फीस जमा कराने की बात रह गई है
आप कृपया फीस ले लीजिये...
लेकिन बाबू और बिगड़ गया
कहने लगा कि आपने पूरा दिन ख़र्च कर दिया
तो उसके लिए वो ज़िम्मेदार है क्या...??
अरे सरकार ज़्यादा लोगों को बहाल करे
मैं तो सुबह से अपना काम ही कर रहा हूँ...
ख़ैर * मेरा मित्र बहुत मायूस हुआ
और उसने कहा कि चलो * अब कल आयेंगे..!!
मैंने उसे रोका और कहा कि थोड़ा रुको
एक और कोशिश करके देखता हूँ...
बाबू अपना थैला लेकर उठ चुका था
मैंने कुछ कहा नहीं * बस चुपचाप उसके पीछे हो लिया
वो एक कैंटीन में गया * वहाँ उसने अपने थैले से लंच बॉक्स निकाला और धीरे धीरे अकेला खाने लगा
मैं उसके सामने की बेंच पर जाकर बैठ गया
मैंने कहा कि तुम्हारे पास तो बहुत काम है
रोज़ बहुत से नये नये लोगों से मिलते होगे...??
वो कहने लगा कि हाँ * मैं तो एक से एक बड़े अधिकारियों से मिलता हूँ...
कई आई.ए.एस. * आई.पी.एस. और विधायक रोज़ यहाँ आते हैं
मेरी कुर्सी के सामने बड़े बड़े लोग इंतज़ार करते हैं
फिर मैंने उससे पूछा कि एक रोटी तुम्हारी प्लेट से मैं भी खा लूँ...??
उसने हाँ कहा...
मैंने एक रोटी उसकी प्लेट से उठा ली और सब्जी के साथ खाने लगा
मैंने उसके खाने की तारीफ़ की और कहा कि
तुम्हारी पत्नी बहुत ही स्वादिष्ट खाना पकाती है..
मैंने उसे कहा कि तुम बहुत महत्वपूर्ण सीट पर बैठे हो...
इतने बड़े बड़े लोग तुम्हारे पास आते हैं
तो क्या तुम अपनी कुर्सी की इज्ज़त करते हो..??
तुम बहुत भाग्यशाली हो जो तुम्हें इतनी महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी मिली है
लेकिन तुम अपने पद की इज्ज़त नहीं करते...!!
उसने मुझसे पूछा कि ऐसा कैसे कहा आपने...??
मैंने कहा कि जो काम दिया गया है
उसकी इज्ज़त करते तो तुम इस तरह रुखे व्यवहार वाले नहीं होते...
देखो तुम्हारा कोई दोस्त भी नहीं है...
तुम दफ़्तर की कैंटीन में अकेले खाना खाते हो...
अपनी कुर्सी पर भी मायूस होकर बैठे रहते हो
लोगों का होता हुआ काम पूरा करने की जगह
अटकाने की कोशिश करते हो...
बाहर गाँव से आ कर सुबह से परेशान हो रहे लोगों के अनुरोध करने पर कहते हो कि
सरकार से कहो कि ज़्यादा लोगों को बहाल करे
अरे ज़्यादा लोगों के बहाल होने से तो तुम्हारी अहमियत घट जायेगी...
हो सकता है तुमसे ये काम ही ले लिया जाये
भगवान ने तुम्हें मौका दिया है रिश्ते बनाने के लिए...
लेकिन तुम अपना दुर्भाग्य देखो
तुम इसका लाभ उठाने की जगह रिश्ते बिगाड़ रहे हो...
मेरा क्या है * कल आ जाऊँगा या परसों आ जाऊँगा
पर तुम्हारे पास तो मौका था किसी को अपना
अहसानमंद बनाने का
तुम उससे चूक गये
मैंने कहा कि पैसे तो बहुत कमा लोगे
लेकिन रिश्ते नहीं कमाये तो सब बेकार है...
क्या करोगे पैसों का...??
अपना व्यवहार ठीक नहीं रखोगे तो
तुम्हारे घर वाले भी तुमसे दुखी रहेंगे...
यार दोस्त तो पहले से ही नहीं हैं...
मेरी बात सुन कर वो रुँआसा हो गया
उसने कहा कि आपने बात सही कही है पंडित जी
मैं अकेला ही हूँ...
पत्नी झगड़ा कर मायके चली गई है
बच्चे भी मुझे पसंद नहीं करते...
माँ है मगर वो भी कुछ ज़्यादा बात नहीं करती
सुबह चार पाँच रोटी बना कर दे देती है
और मैं तनहा खाना खाता रहता हूँ
रात में घर जाने का मन भी नहीं करता
समझ में नहीं आता कि गड़बड़ी कहाँ है...??
मैंने हौले से कहा कि ख़ुद को लोगों से जोड़ो
किसी की मदद कर सकते तो तो अवश्य करो
देखो मैं यहाँ अपने दोस्त के पासपोर्ट के लिए आया हूँ
मेरे पास तो पासपोर्ट है ही
मैंने दोस्त की ख़ातिर तुम्हारी मिन्नतें कीं
एकदम निस्वार्थ भाव से...
इसलिए मेरे पास दोस्त हैं * तुम्हारे पास नहीं हैं
वो उठा और उसने मुझसे कहा कि पंडित जी आप मेरी खिड़की पर पहुँचीये
मैं आज ही फार्म जमा करुँगा और उसने काम कर दिया
फिर उसने मेरा फोन नंबर मांगा जो मैंने दे दिया
इस वाकये को बरसों बीत गये
इस दीवाली पर एक फोन आया
रवींद्र कुमार चौधरी बोल रहा हूँ पंडित जी
कई साल पहले आप हमारे पास अपने किसी
दोस्त के पासपोर्ट के लिए आये थे
और आपने मेरे साथ रोटी भी खाई थी
आपने कहा था कि पैसे की जगह रिश्ते बनाओ
मुझे एकदम याद आ गया
मैंने कहा हाँ जी चौधरी साहब * कैसे हैं...??
उसने खुश होकर कहा ;- "पंडित जी आप तो उस दिन चले गये फिर मैं बहुत सोचता रहा...
मुझे लगा कि पैसे तो सचमुच बहुत लोग दे जाते हैं
लेकिन साथ खाना खाने वाला कोई नहीं मिलता
मैं साहब अगले ही दिन पत्नी के मायके गया
बहुत मिन्नतें कर उसे वापस घर ले आया
जबकि वो मान ही नहीं रही थी
वो खाना खाने बैठी तो मैंने उसकी प्लेट से एक रोटी उठा ली
उससे कहा कि साथ खिलाओगी...??
वो हैरान थी और यकायक रोने लगी
मेरे साथ चली आई
बच्चे भी साथ चले आये
साहब * अब मैं पैसे नहीं कमाता
बल्कि रिश्ते कमाता हूँ
जो आता है * उसका काम कर देता हूँ...
पंडित जी * आज आपको हैप्पी दीवाली बोलने के लिए फोन किया है
अगले महीने बिटिया की शादी है
आपको ज़रूर आना है...
बिटिया को आशीर्वाद देने
रिश्ता जोड़ा है आपने
वो बोलता जा रहा था
और मैं सुनता जा रहा था
सोचा नहीं था कि सचमुच उसकी ज़िंदगी में भी पैसों पर रिश्ता इतना भारी पड़ेगा
"दोस्तों....आदमी भावनाओं से संचालित होता है
कारणों से नहीं कारण से तो मशीनें चला करती हैं"
~अज्ञात